Ad

मोदी सरकार

कृषि, परिवर्तन को चाहिए तंत्र

कृषि, परिवर्तन को चाहिए तंत्र

अभी तक सरकार केवल किसानों की आय दोगुनी करने का मंत्र दे रही है। सरकार को लग रहा है कि तीन कृषि कानूनों से खेती-किसानी की तसबीर और तकदीर बदल जाएगी लेकिन ऐसा संभव नहीं दिखता। इसके लिए जरूरी तंत्र सरकार के पास नहीं है, यदि होता तो हर जिले के कृषि विज्ञान केन्द्र पर उस मॉडल की झलक मिल जाती जिससे किसानों की आय दोगुनी हो सकती।

आय दोगुनी करने का नहीं कोई मॉडल

इस मॉडल का प्रचार-प्रसार भी मन की बात से लेकर दूर दर्शन तक खूब होता। इसी लिए सरकार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कारोबारी समझ वाले लोगों को माध्यम बनाकर किसानों की तकदीर बदलना चाहती है, लेकिन किसान कारोबारी सोच को सात दशकों से देखते आ रहे हैं। कारोबारी अपने मुनाफे में किसी तरह की कमी नहीं होने देते। वहीं किसान को उचित कीमत या घोषित एमएसपी देने के लिए न तो खुद प्रतिबद्ध है ना सरकार इसके लिए किसी को पावंद करती है।

गेहूं 15, आटा 35 रुपए किलो क्यों

छोटे से उदाहरण से कारोबारी सोच को समझाने का प्रयास करता हूं। वर्तमान में मंडियों में गेहूं कहीं भी 1700 रुपए कुंतल से ज्यादा नहीं है। बाजार में निकलिए इसी गेहूं का आटा बढ़िया स्लोगनों वाले पैकिटों में 30 से 35 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा है। इस आटे में अलग से नतो बादाम का पाउडर मिलया गया है ना विटामिन न मिनरल। इसके बाद भी अधिकतम दो रुपए प्रति किलोग्राम की पिसाई, चार से पांच रुपए की पैकिंग में पैक होकर इतना कीमती हो जाता है। वह आटा एमपी के गेहूं का भले नहो लेकिन बिकता इसी लेबिल से है। बात करें लाइसेंसिंग अथॉरिटी यानी एफएसएसआई की तो उसकी बेवसाइट पर साफ लिखा दिखता है कि देश में दूध उत्पादन से 76 प्रतिशत अधिक है। यानी बाजार मिलावटी दूध से अटा पड़ा है और सरकार का तंत्र चंद जगह सेंपिलिंग करके कर्तब्य की इतिश्री किए हुए है। इसी गेहूं का दलिया सामान्य से सामान्य पैकिंग में भी 50 रुपए प्रति किलोग्राम से नीचे नहीं है। चंद पैसे की दलाई और छनाई के बाद दलिया इतना महंगा कैसे हो जाता है।

कोरोनाकाल की आर्थिक राहत किसे मिली

किसान को भगवान न मानने वाला कोई व्यक्ति कह सकता है कि किसान गेहूं क्यों बेचता है। वह आटा, सूजी, दलिया बनाकर बेचे। हां बात बिल्कुल ठीक है लेकिन कोरोना काल में सरकार द्वारा रोजगार श्रजन के लिए उठाए गए कदमों में करोड़ों करोड़ की मदद वही लोग डकार गए जो पहले से इस तरह के कारोबार कर रहे थे। यह अलग बात है कि उन्होंने इसके लिए नाम भर बदल दिया। बैंकर्स को भी इन्हें फंडिंग करना आसान रहता है। धन की वापसी की गारंटी रहती है। नए आदमी के कारोबार के चलने न चलने की कोई गारंटी नहीं रहती।

कूडे के भाव बिका धान, अब महंगा

दूसरा उदाहरण देखिए। धान के ज्यादातर निर्यातक करनाल में रहते हैं या यहां से काम करते हैं। वह सीजन से पूर्व एक होटल में मीटिंग करते हैं। जमकर एन्ज्वाय करते हैं और यहीं डिसाइड कर लेते हैं कि किस मंडी से किस श्रेणी का धान किस भाव खरीदना है। इस बार गुजरे फसल सीजन में गेहूं 1800 रुपए कुंतल बिका। सीजन जाते जाते सरकार ने एफसीआई के गेहूं कीमतें कम कर दीं। दूसरी तरफ कोराना काल में लोगों का पेट भरने के लिए निःशुल्क गेहूं बांटना शुरू कार दिया। तीसरा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी गेहूं सस्ता हो गया। राशन में गेहूं मुफ्त मिलने से गेहूं का उठान बंद हो गया और गेहूं 1600 रुपए कुंतल तक गिर गया। धान के कारोबारियों ने इस गिरावट का संज्ञान लिया और धान का सीजन आते ही गुजरे सालों में 3000 रुपए कुंतल के पार बिक चुके बासमती श्रेणी के धान को 1500 रुपए कुंतल के नीचे खरीदना शुरू कर दिया। अब कितनी भी गिरावट हो उन्हें कोई फर्क नहीं पडे़गा। किसान के पास से धान निकलने के एक पखवाडे़ बाद ही इसकी कीमतें बढ़ गई हैं।

काबू में नहीं आई आज तक प्याज

तीसरा उदाहरण देखिए। मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के आते आते एक मात्र प्याज की कीमतें नियंत्रित नहीं कर पाई। कारोबारी सोच से साफ झलकता है कि देश में प्याज की किल्ललत पैदा करके कीमतें बढ़ाई जाती हैं। कीमतें बढ़ने के बाद महीनों लगता है निर्यात की प्रक्रिया पूरा करने में। इसके बाद कहीं कीमतें नियंत्रित होना शुरू होती हैं। इस दुरावस्था को नियंत्रित करने के लिए तंत्र चाहिए। ना जमीन की कमी है न प्याज लगाने वाले क्षेत्र की कमी है फिर बार बार आम आदमी को प्याज रुलाती है और सरकार भी महीनों की चीख चिल्लाहट के बाद इसे सुन पाती है।

नए कानूनों से विकसित होगा तंत्र

कोई ज्ञानी कह सकता है कि सरकार तीन नए कानूनों के माध्यम से इसी तंत्र को विकसित करना चाहती है लेकिन चंद राजैनैतिक दल भोले भाले किसानों को बरगलाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। अरे भाई सरकार स्वाइल हेल्थ कार्ड बनवा चुकी है। उसे पता है कि किस इलाके में कौनसी फसल अच्छी हो सकती है। हमारी देश की मांग कितनी है और कितना निर्यात किया जा सकता है। इसी के अनुरूप फसलें लगाने के लिए किसानों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाए। गुजरे सीजन में हरियाणा सरकार ने धान की खेती छोड़ने वाले किसानों को प्रोत्साहित किया। इसके परिणाम भी संतोशजनक हैं। छत्तीसगढ़ सरकार गोबर खरीदकर बर्मी कम्पोस्ट बनाने की दिशा में किसानों को प्रेरित कर रही है। इससे लोगों की माली हालत तो सुधरी ही है सरकार की छवि भी सुधरी है। इधर उत्तर प्रदेश सरकार ने गो आश्रय सदनों के अलावा गो शालाओं को करोड़ों करोड़ दिए हैं इसके बाद भी गाय भूखों मर रही हैं। दूसरे राज्यों की अच्छी योजनाओं को अपनाने में भी लोग तौहीन समझते हैं। उन्हें राज्य के लोगों के हितों से ज्यादा खुद के अहं की रखवाली करना ठीक लगता है।

कृषि और किसान को नहीं कोई गारंटी

कृषि क्षेत्र एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां किसी तरह की गारंटी नहीं। सरकार ने प्रयास किए हैं कि किसानों के पाल्यों को भी गारंटी मिले लेकिन हर मामले में यह संभव नहीं हो पाता। मसलन खाद के साथ बीमा फ्री। इफको कंपनी के 25 बैग यूरिया लेने पर बैग खरीदने के एक माह बाद से किसान  दुर्घटना बीमा का हकदार हो जाता है। एक लाख रुपए तक के इस बीमे की जानकारी किसान को नहीं। वह खेत के लिए खाद लेने जाता है । जो मिला सो ठीक बीमा वाला खाद कहां खोजता फिरे। एक चपरासी के परिवार को उसके जीवित रहते और मर  जाने के बाद भी अनुकम्पा के आधार पर नौकरी, पेंशन आदि की गारंटी होती है लेकिन किसानी के मामले में ऐसा कुछ नहीं। किसान अब अपने बच्चों को किसान नहीं बनाना चाहता। चंद पढ़े लिखे लोग नौकरी छोड़कर बने किसान जैसी भ्रामक खबरें हम देखते हैं लेकिन हकीकत यही है कि हर किसान इनके जितना काबिल नहीं। कारोबारी सोच वाला नहीं कि अपने माल की उचित कीमत पा सके।

सड़कों पर किसान दिवस

आप सभी को किसान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। कृषि क्षेत्र में किसानों के हक की लडाई के लिए चैधरी चरण सिंह को सदैय याद किया जाएगा। वह देश के प्रधानमंत्री तक बने। 23 दिसंबर को उनके जन्मदिन को किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। आजादी के बाद यह पहला किसान दिवस होगा जिस पर किसान अपनी ही सरकार के निर्णय को पलटने के लिए सड़कों पर हैं। कई मौसम की मार से काल कबलिति हो चुके हैं। यह अलग बात है कि इनमें ज्यादातर हरियाणा और पंजाब के हैं। इन दोनों राज्यों को ही किसानी के मामले में अग्रणी माना जाता है। किसी भी गाड़ी में इंजन एक दो ही होते हैं। बाकी तो डब्बे ही होते हैं। दो राज्य रेलगाड़ी के डिब्बे का काम कर रहे हैं तो बुरा क्या है। बाकी राज्य भी डिब्बों की भूमिका में हैं। किसानों को सम्मान दिए बगैर इस देश को आगे नहीं बढाया जा सकता। देश की 80 प्रतिशत आबादी परोक्ष या अपरोक्ष रूप से खेती से ही जुड़ी है। चिंताजनक बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हठधर्मितावादी नीति ‘मैं जो करूंगा सही करूंगा’ के खिलाफ जारी किसानों की जंग देश को किस ओर ले जाएगी कहा नहीं जा सकता।
यह राज्य सरकार इस योजना के अंतर्गत महिलाओं को प्रति माह 1000 रुपये मुहैय्या करा रही है

यह राज्य सरकार इस योजना के अंतर्गत महिलाओं को प्रति माह 1000 रुपये मुहैय्या करा रही है

मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से राज्य की महिलाओं के लिए मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना चालू की गई है। योजना के अंतर्ग महिलाओं को 1000 रुपये हर माह दिए जाएंगे। इससे महिलाऐं काफी समृद्ध हो सकेंगी। बतादें, कि राज्य सरकारें महिलाओं को सशक्त और मजबूत बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं। महिलाओं को उनका अधिकार मिल पाए। इस संबंध में राज्य सरकारें निरंतर कदम उठाती रहती है। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भी महिलाओं के लिए बड़ी कवायद की है। एक करोड़ से ज्यादा महिलाएं इस योजना के अंतर्गत जुड़ चुकी है। राज्य सरकार उन्हें सशक्त व मजबूत करने का कार्य कर रही हैं। हालांकि, इस योजना का फायदा चुनावी तौर पर भी जोड़कर देखा जा रहा है। साथ ही, राज्य सरकार द्वारा महिलाओं को समृद्ध और सशक्त बनाना ही पहली प्राथमिकता बताई जा रही है।

महिलाओं को प्रति माह मिलेंगे 1000 रुपये

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना जारी की है। योजना के अंतर्गत महिला आवेदकों को पंजीकरण करवाना जरुरी होगा। उसके बाद में संपूर्ण जांच पड़ताल करने के उपरांत महिलाओं के खाते में प्रति माह 1000 रुपये हस्तांतरित किए जाएंगे। महिलाओं को यह धनराशि 10 जून के उपरांत मिलनी चालू हो जाएगी।

पंजीकरण की अंतिम तिथि क्या है

लाडली योजना का लाभ उठाने के लिए आवेदन की तिथि 30 अप्रैल तक निर्धारित की गई है। आवेदकों की जांच कर उनका निराकरण 15 से 30 मई तक किया जाएगा। राज्य सरकार के अधिकारी योजना से जुड़ी समस्त जानकारी पोर्टल पर 31 मई तक प्रेषित कर दी जाएगी।

कितनी वर्षीय महिलाऐं इस योजना का फायदा उठा सकती हैं

जानकारी के लिए बतादें कि इस योजना का फायदा सिर्फ 23 से 60 साल तक की महिलाओं को प्राप्त हो पाएगा। परंतु, इस बात पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित रखना है, कि परिवार आयकर दाता नही होना चाहिए। साथ ही, उसके घर में चार पहिया वाहन भी नही होना चाहिए इसके अतिरिक्त बाकी नियमों का भी ध्यान रखा जाएगा। ये भी पढ़े: 3 लाख किसान महिलाओं के खाते में 54,000 करोड़ रुपये भेज किया आर्थिक सशक्तिकरण

योजना का फायदा लेने के लिए आवश्यक दस्तावेज

दस्तावेजों के लिए कुछ डॉक्यूमेंट भी अत्यंत जरुरी कर दिए गए हैं। इसके अंतर्गत पासबुक की फोटोकॉपी, मोबाइल नंबर, आधार कार्ड की कॉपी एवं एक फोटो की भी आवश्यकता होगी। किसान राज्य सरकार की अधिकारिक वेबसाइट पर जाकर अपने आप से भी अपलोड कर सकते हैं। कॉमन सर्विस सेंटर में भी पंजीकरण करवाया जा सकता है।
भारत सरकार शून्य बजट प्राकृतिक खेती के लिए क्यों और किस तरह से बढ़ावा दे रही है

भारत सरकार शून्य बजट प्राकृतिक खेती के लिए क्यों और किस तरह से बढ़ावा दे रही है

भारत के अंदर शून्य बजट प्राकृतिक खेती (जेडबीएनएफ) टिकाऊ एवं फायदेमंद दोनों होने की क्षमता रखती है। हालांकि, बहुत सारे कारक इसकी सफलता और लाभप्रदता को प्रभावित करते हैं। लागत-मुनाफा अनुपात के मुताबिक, यह दीर्घकाल में तभी फायदेमंद हो सकता है। जब एक स्थापित मूल्य श्रृंखला के साथ बड़े स्तर पर किया जाए और लघु स्तरीय किसानों के लिए इससे उबरना कठिन साबित होगा।

ZBNF के तहत स्थिरता

ZBNF जैविक कृषि पद्धतियों, मृदा संरक्षण एवं जल प्रबंधन पर विशेष ध्यान केंद्रित करता है, जो दीर्घकालिक स्थिरता में सहयोग प्रदान करता है। रासायनिक आदानों को खत्म करके, ZBNF मृदा के स्वास्थ्य, जैव विविधता एवं पारिस्थितिक संतुलन को प्रोत्साहन देता है। यह बाहरी इनपुट पर निर्भरता को कम करता है, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करता है एवं कृषि प्रणाली में भी काफी सुधार करता है।

ये भी पढ़ें:
इस राज्य के किसान ने एक साथ विभिन्न फलों का उत्पादन कर रचा इतिहास

ZBNF के अंतर्गत लागत में बचत

ZBNF के मुख्य सिद्धांतों में से एक बाहरी इनपुट को समाप्त करना और लागत को कम करना है। स्थानीय तौर पर उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करके और प्राकृतिक कृषि तकनीकों को अपनाकर, किसान रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों एवं बीजों के खर्च को कम अथवा समाप्त कर सकते हैं। इससे वक्त के साथ महत्वपूर्ण लागत बचत हो सकती है, जिससे कृषि कार्यों की लाभप्रदता बढ़ सकती है।

मृदा स्वास्थ्य एवं पैदावार में सुधार

ZBNF प्रथाएं मल्चिंग, कम्पोस्टिंग एवं इंटरक्रॉपिंग जैसी तकनीकों के माध्यम से मृदा की उर्वरता में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करती हैं। ये विधियाँ मिट्टी की संरचना, जल-धारण क्षमता एवं पोषक तत्वों की विघमानता को बढ़ाती हैं, जिससे फसल की पैदावार में सुधार होता है। बढ़ी हुई उत्पादकता एवं लाभप्रदता पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। विशेष कर यदि किसान उन बाजारों तक पहुंच सकते हैं, जो जैविक पैदावार को पहचानते हैं और प्रीमियम का समय से भुगतान करते हैं।

ZBNF के अंतर्गत स्वास्थ्य जोखिम और इनपुट निर्भरता में कमी

रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों को समाप्त करके, ZBNF कृषकों एवं उपभोक्ताओं के लिए उनके इस्तेमाल से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को कम करता है। यह महंगे बाहरी इनपुट पर निर्भरता को भी काफी कम करता है, जिससे खेती का काम ज्यादा आत्मनिर्भर और मूल्य में उतार-चढ़ाव के प्रति सहज हो जाता है।

ZBNF के अंतर्गत जैविक उपज की बाजार मांग

भारत और विश्व स्तर पर जैविक एवं रसायन-मुक्त उत्पादों की मांग बढ़ती जा रही है। ZBNF इस बाजार प्रवृत्ति के साथ संरेखित होता है, जिससे किसानों को प्रीमियम बाजारों में प्रवेश करने और अपनी जैविक उपज के लिए उच्च मूल्य प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है। हालाँकि, इन बाजारों तक पहुँचना एवं प्रभावी ढंग से स्थिरता कायम करना एक चुनौती हो सकती है, और लाभप्रदता सुनिश्चित करने के लिए बाजार संपर्क विकसित करने की जरूरत है।

ये भी पढ़ें:
इस राज्य के किसान ने जैविक विधि से खेती कर कमाए लाखों अन्य किसानों के लिए भी बने मिशाल

ZBNF के अंतर्गत ज्ञान और क्षमता निर्माण

ZBNF के सफल कार्यान्वयन के लिए किसानों को पर्याप्त ज्ञान और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। आवश्यक प्रशिक्षण, तकनीकी सहायता और ज्ञान-साझाकरण मंच प्रदान करने के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम, सरकारी सहायता और कृषि संस्थानों और गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी महत्वपूर्ण है। ZBNF प्रथाओं में सूचना, अनुसंधान और नवाचारों तक पहुंच स्थिरता और लाभप्रदता को और बढ़ा सकती है।

भारत सरकार शून्य बजट प्राकृतिक खेती को इस तरह से प्रोत्साहन दे रही है

सरकार प्राकृतिक खेती समेत पारंपरिक स्वदेशी प्रथाओं को प्रोत्साहन देने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) की एक उप-योजना के रूप में 2020-21 के दौरान चलाई गई भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) के जरिए प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन दे रही है। यह योजना विशेष रूप से समस्त सिंथेटिक रासायनिक आदानों के बहिष्कार पर बल देती है। साथ ही, बायोमास मल्चिंग, गाय के गोबर-मूत्र फॉर्मूलेशन के इस्तेमाल और अन्य पौधे-आधारित तैयारियों पर विशेष जोर देकर खेत पर बायोमास रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहन देती है। बीपीकेपी के अंतर्गत क्लस्टर निर्माण, क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा निरंतर सहायता, प्रमाणन एवं अवशेष विश्लेषण के लिए 3 सालों के लिए 12,200 रुपये प्रति हेक्टेयर की वित्तीय सहायता मुहैय्या कराई जाती है।

प्राकृतिक खेती के तहत 4.09 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल को कवर किया गया है

कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, प्राकृतिक खेती के अंतर्गत 4.09 लाख हेक्टेयर रकबे को कवर किया गया है। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि देश भर के 8 राज्यों को कुल 4,980.99 लाख रुपये का फंड जारी किया गया है। जबकि ZBNF में टिकाऊ और लाभदायक होने की क्षमता है, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि परिणाम स्थानीय कृषि-जलवायु स्थितियों, फसल चयन, बाजार की गतिशीलता, किसानों के कौशल और संसाधनों तक पहुंच जैसे अहम कारकों के आधार पर अलग हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, ZBNF में परिवर्तन के लिए प्रारंभिक निवेश, मिट्टी के स्वास्थ्य की बहाली के लिए समय और किसानों के लिए सीखने की स्थिति की जरूरत हो सकती है। हालाँकि, उचित कार्यान्वयन, समर्थन एवं बाजार संबंधों के साथ, ZBNF भारत में एक टिकाऊ एवं लाभदायक कृषि मॉडल प्रस्तुत कर सकता है।